दोस्तों ये जो कहानी आज आप पढ़ने वाले है ,
ये बताती है कि सफल होना ही काफी नही होता बल्कि
सफलता को अगर बरकरार ना रखा जाए तो
हमारी गिरावट का graph तेजी के साथ नीचे की और आता जाता है ।
आपका ज्यादा समय ना लेते हुए कहानी को शुरू करते है।
एक बहुत ही प्रसिद्ध मूर्तिकार था ।
बहुत ही सुंदर मूर्ति बनाता था,
वो चाहता था कि उसका बेटा भी उससे बढ़िया मूर्तिकार बने
और यही हुआ जैसा कि उसने सोचा वो भी मूर्तिकार बन चुका था।
वक्त के साथ साथ वह अपने पिता जी से पूछता था कि उसने
मूर्ति केसी बनाई और उसके पिता हर बार इसकी मूर्तियों में
कोई ना कोई खामी निकाल देते थे,
लेकिन वह पिता की बात मानता गया और अच्छी अच्छी मुर्तिया बनाने लगा ।
एक समय ऐसा आ गया कि,
अब पुत्र की मूर्तियां पिता की मूर्तियों से ज्यादा सुंदर और अच्छी है,
लेकिन अब भी उसके पिता उसकी मूर्तियों में कमी निकाल ही देते थे,
उसके सब्र का बांध टूट चुका था और उसको अपने आप पर
अभिमान था कि वो पिता से बेहतर मुर्तिया बनाता है ।
वो झल्ला गया उन पर,
अब उसके पिता ने मूर्ति पर टिप्पणी करना बंद कर दिया ।
जैसे जैसे वक्त गुजरता गया उसकी मुर्तिया अब पहले जैसी नही बन रही थी
और देखते ही देखते वह बहुत ही बेकार मुर्तिया बनाने लगा
अब अंततः वह परेशान होकर पिताजी के पास गया
पिता जी समझ गए थे कि ये वक्त जरूर आएगा
और वो बोला कि मैं अब पहले से अच्छी मुर्तिया क्यों नही बना पा रहा हू?
उन्होंने उत्तर दिया क्योंकि तुम अपने काम से सन्तुष्ठ होने लगे हो इसलिए ,
वो समझा नही ।
पिता ने कहा जब तुम्हे लगता है कि तुम बहुत अच्छी मूर्ति बनाते हो
और इससे अच्छी ही बना सकते तो आगे बढ़ने की
सम्भावना काफी कम है ।
हमेशा वही इंसान सफलता को आगे ले जा पाता है, जो यह
सोचता है कि कैसे मैं ओर भी ज्यादा अच्छा कर सकता हूँ।
तो वो बोला कि आपको पता था कि ऐसा टाइम आएगा
तो फिर आपने मुझे ये बात पहले क्यो नही बताई
उन्होंने जवाब दिया की मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था ।
मैं भी नही समझा जब तुम्हारे दादा जी ने मुझे समझाने का
प्रयास किया ।
कुछ बातें प्रयोग से ही समझ आती है ।
यही जीवन की सच्चाई है
और फिर वो अपने पिता द्वारा दी हुई सीख अपनाते हुए
अच्छी से अच्छी मुर्तिया बनाने
लगा ।
By
Mrs. Pushpa Balpande
PRT
Shivom Vidyapeeth, Raipura