महिला सशक्तिकरण किसी आदर्शवाद का नाम नहीं, वरन यह महिलाओं के स्वालंबन की अनवरत प्रक्रिया है। सशक्त महिला का अर्थ ऐसी महिलाओं से हैं, जिनकी निर्णय क्षमता और नेतृत्व को मान्यता दी जा सके हमारे देश में ऐसी महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन्होंने अपने अनुभवों तथा रचनात्मक विचारों से समाज की स्वस्थ मानसिकता के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
21वीं सदी में भारतीय नारी ने उत्साह के साथ जीवन क्षेत्र में कार्यरत है। लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना शेष है। स्त्री-पुरुष विषमता, बालिका-शिशु भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा जैसी कई समस्याएँ महिलाओं के प्रगति में बाधक हैं। महिला सशक्तिकरण एक जीवन दर्शन है जिसके लिए संपूर्ण राष्ट्र को प्रयास करना चाहिए। इसके लिए हमें स्त्री शिक्षा और सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। यद्यपि आज राजनीति में महिलाओं को स्थान मिला है किंतु इसे विस्तार देने की आवश्यकता है। आर्थिक स्वालंबन के द्वारा महिलाएँ स्वविवेक पर आधारित निर्णय लेने में सक्षम हो सकती हैं। महिलाओं के आत्मनिर्भर होने के साथ ही उनकी नेतृत्व-क्षमता को भी स्वीकृति मिली है। निर्णय और नीतियों के निर्माण में उनकी भूमिका के बढ़ने से से महिला-हितों की रक्षा अवश्य हुई है किंतु अभी यात्रा बहुत लंबी है। जिसके लिए हम सभी को प्रयास करना होगा।
By
Mrs. Smriti Singh
PGT
Shivom Vidyapeeth, Sankra